उम्मीदे-वस्ल बनाए रखना, शब़े -इन्तज़ार के बाद। उम्मीदे-वस्ल बनाए रखना, शब़े -इन्तज़ार के बाद।
वक़्त की रफ्तार में ऐसी नजाकत थी कि अब अपने साए से भी बेजार हो गए हम ना जाने कसूर किसका पर रोत... वक़्त की रफ्तार में ऐसी नजाकत थी कि अब अपने साए से भी बेजार हो गए हम ना जा...
हँसते खेलते परिवारों को बेजार कर देते हैं। हँसते खेलते परिवारों को बेजार कर देते हैं।
क्यों नहीं मिलती उसे उसकी खुशियाँ, क्यों हर बार वो गमों से बेजार होता है। क्यों नहीं मिलती उसे उसकी खुशियाँ, क्यों हर बार वो गमों से बेजार होता है।
मर गया क्या ज़मीर ये तेरा जो तू नामर्द बनकर बैठा हैं भाई किसी का हैं तू भी अब जल्लाद बनकर बैठा... मर गया क्या ज़मीर ये तेरा जो तू नामर्द बनकर बैठा हैं भाई किसी का हैं तू भी ...
हम बेकार में तू तू मैं मैं में उलझा रहते है रास्ता भटकने की भूल करते है हम बेकार में तू तू मैं मैं में उलझा रहते है रास्ता भटकने की भूल करते है