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Prem Bajaj

Abstract

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Prem Bajaj

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उम्मीदे-वस्ल

उम्मीदे-वस्ल

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ग़ैर लेते रहे आप की महफ़िल में

बोसे पे बोसे जाम के,

हम तरसते रहे लब-ए-पैग़ाम के।


बेशक रूख़्सत कर दो हमें महफ़िल से,

बाखुदा दिल से ना रूख़्सत करना,

मैं भी चुप रहूँगा, तुम भी चुप रहना,

तन्हाई मे जी लेंगे हम,

मग़र हमसे ना बेवफ़ाई करना।


ग़र बढ़ानी थी दूरियाँ तो नज़दिकियाँ ही

क्यों बढ़ाई थी, जल की धारा सा

अस्तित्व तुम्हारा, मुझ आवारा बादल को

बाँधा ही क्यूँ था। छोड़ दी हमने बन्दगी खुदा की,


तेरे दीदार के बाद, नहीं आता नज़र हमें

कोई का़बा अब बुतकदा (प्रेमिका का घर) के बाद। 

काफ़िर नही हूँ यारों, खुदा का ना सही 

यार का सजदा करता हूँ, खुदा में ही यार है,


यार में ही खुदा है, ये समझ आया,

इश्के- ग़म से बेज़ार के बाद।

हम मरीज़-ए-इश्क है तुम्हारे ही,

तुम्हारे पहलु मे मरना चाहेंगे,


ग़र मिल जाए पनाह इक शब़ की,

ताउम्र गुज़ार देंगे तेरी याद में,

मौला मेरे इतनी सी इल्तजा है,

उम्मीदे-वस्ल बनाए रखना,

शब़े -इन्तज़ार के बाद।


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