STORYMIRROR

Dipanshu Asri

Abstract

3  

Dipanshu Asri

Abstract

निर्भया

निर्भया

1 min
273

आज शर्मिंदा हूँ बेज़ार हूँ 

मैं देश के कुछ गद्दारों से 

क्यों लुटती हैं वो आबरू 

क्यूँ भरा हैं मंज़र हत्यारों से 


मर गया क्या ज़मीर ये तेरा 

जो तू नामर्द बनकर बैठा हैं 

भाई किसी का हैं तू भी 

अब जल्लाद बनकर बैठा हैं 


कब तक निर्भया हर बार मरेगी 

कब तो आवाज़ दबाएगी 

वक़्त नहीं अब सुनने का 

अब वो भी शस्त्र उठाएगी 

अब वो भी शस्त्र उठाएगी।


साहित्याला गुण द्या
लॉग इन

Similar hindi poem from Abstract