निर्भया
निर्भया
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आज शर्मिंदा हूँ बेज़ार हूँ
मैं देश के कुछ गद्दारों से
क्यों लुटती हैं वो आबरू
क्यूँ भरा हैं मंज़र हत्यारों से
मर गया क्या ज़मीर ये तेरा
जो तू नामर्द बनकर बैठा हैं
भाई किसी का हैं तू भी
अब जल्लाद बनकर बैठा हैं
कब तक निर्भया हर बार मरेगी
कब तो आवाज़ दबाएगी
वक़्त नहीं अब सुनने का
अब वो भी शस्त्र उठाएगी
अब वो भी शस्त्र उठाएगी।