अन्नदाता किसान
अन्नदाता किसान
मैं खेतों में अन्न उगाने वाले से मिलवाता हूं,
आज आपको अन्न के दाता की गाथा सुनावाता हूं।
काम किया खेतों में दिन भर शाम को घर ये आता है,
कभी-कभी तो थक कर प्यासा भूखा ही सो जाता है।
कई बार कई कई महीनों तक खेतों में ही काम किया,
खुले आसमान के नीचे ही रात्रि में विश्राम किया।।
सर्दी की ठिठुरन में रातों में फसलों को सींचा है,
किस्मत के माथे पर मेहनत की रेखा को खींचा है।।
बिखरे बालों पर मिट्टी कूड़े ने डेरा डाला है,
आंखें थकी हुई माथे पर चिंता का रंग काला है।।
उसके कालेपन से ही मैं हर दिन भोजन पाता हूं
आज आपको अन्न उगाने वाले से मिलवाता हूं।।
मूंगफली तिल उड़द बाजरा मक्का मसरि सोया है,
चार गुने दामों को देकर इनमें से कुछ बोया है।।
रखवाली करती आंखें जो एक घड़ी को झपक गई,
अन्ना पशुओं के समूह से आधी फसलें चपट गई।।
जो किसान की आंख खुली तो दिल पर पत्थर खाया है,
ऊपर से बारिश ने अपना बेढंग रूप दिखाया है।।
जैसे तैसे फसलों के पकने की बारी आई है,
पानी ने पत्थर बनकर फसलों पर गाज गिराई है।।
बची खुचे दाने पाकर, भी किसान को गिला नहीं,
हद हो गई तब जब उसको कीमत का आधा मिला नहीं,।।
सत्ता के गलियारे भी सुने पन से भर जाएंगे,
ना किसान हो तो आका भी भूखे ही मर जाएंगे।।
सत्ता वाले कह दे कि मैं भोजन को नहीं खाता हूं,
आज आपको अन्न के दाता की गाथा सुनावाता हूं।।
मैं किसान का बेटा हूं पर गहन मौन में खोया हूं,
मैं भी उसकी पीड़ा में रातों को रो कर सोया हूं।।
मौन टूटता है तब जब सर्वत्र अति हो जाती है,
मेहनत का कोई मोल नहीं उसकी दुर्गति हो जाती है, ।।
आजादी के बाद से सारी चीजें कई कई गुना बढ़ी,
पर किसान की फसल आज भी कीमत को मोहताज खड़ी।।
सातवां वेतन बढ़ा दिया सरकारों ने सरकारी का,
आत्मदाह ही क्यों होता है कर्ज में डूबे भारी का।।
जबकि वह भार उठाता है हर मानव के परिवारों का,
फिर क्यों दाम नहीं मिलता उसको अपने अधिकारों का।।
विनय निवेदन है मेरा भगवन इतना ही कर दें
कम से कम अन्न के दाता को ग्लानि से भर मरने ना दें, ।।
जो दर्द ही दर्द लिए बैठा मैं उसकी बात बताता हूं,
आज आपको अन्न के दाता की गाथा सुनावाता हूं।।
