STORYMIRROR

Archana Samriddhi Pathak

Tragedy

4  

Archana Samriddhi Pathak

Tragedy

औरत की परिभाषा

औरत की परिभाषा

1 min
658

एक औरत की परिभाषा जब लिखने बैठी मैं, 

बैठ झरोखे से जब खुद के, अंतर्मन को ताकने बैठी मैं ,

तहखानों में बंद ही पाया, 

चातक को चाह एक बूंद की जैसे, 

अपनी ही पहचान को तरसने लगी मैं, 

टटोला जब खुद को, 

मिला बिल्कुल अनोखा केदार मुझे, 

जिससे कोई सरोकार नहीं मुझे, 

बाप के घर के लिए सदा पराई,

पति के लिए वंश बढ़ाने की, सिर्फ एक परिभाषा के लिए बस बनकर रह जाऊ, 

समाज में मुझको नारी का दर्जा मिलता है ,

अगर मिल जाऊं अकेले में, तो स्वरूप मेरा बाजारों में बिकता है, 

कहां नहीं मंडराते हैं वह ,जो मुझको नोज के खाएंगे ,

बस नवरात्रि आने पर ही हम सब पूजे जाएंगे ||

औरत की परिभाषा जब लिखने बैठी…

विधवा होने पर ,सब सम्मान क्यों खोना पड़ता है,

काली स्याही से अपने जीवन को क्यों मुझको रगना पड़ता है, 

सब कहते हैं ,हां सब कहते हैं ,

अबला नहीं ,सबला हूं मैं ,

बस ढंढस ये शब्द दे जाते हैं, 

रोज कुमाहार की मिट्टी जैसे ,

हर अरमान क्यों रोधे जाते हैं,

कहते हैं, नारी अब शमशान तक भी जाती है, 

पर जहां पैतृक संपत्ति की बात कहीं पर आती है,

मुझसे ही मेरे हक की तदबीर छीन ले जाती है, 

आज भी बेटी ,बेटे का फर्क मुझे समझाती है, 

बदले की छवि कभी, 

मेरी इस उम्मीद में अब तक बैठी हूं 

औरत की परिभाषा को बदलने के लिए फिर हट कर बैठी हूँ..


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy