हाथों की लकीरों !
हाथों की लकीरों !
तुझे अपना बनाने का जो ख्वाब है
उसे अपनी आँखों में सजाये बैठा है वो,
अपने हाथों की लकीरों में तेरे ही
नाम की एक लकीर बना रहा है वो ,
तुझे खोने के डर से ख़ौफ़ज़दा है वो
अश्क़ों को अपनी पलकों में सजाये बैठा है वो,
बिखरे हुए ख़्वाबों के टुकड़े बटोरकर
नए ख़्वाबों को ढाढ़स बंधा रहा है वो,
सिसकती अपनी सांसों को सीने में दबाये
नई उम्मीदों पर महल खड़ा कर रहा है वो,
अपने ज़ज़्बातों से कुछ इस तरह लड़ रहा है वो
कि किस्तों में हंस रहा है किस्तों में रो रहा है वो !

