हाथों की लकीरें
हाथों की लकीरें
मेरे इन हाथों में है,
सिर्फ मेहनत की लकीर।
नहीं है इतना कि बदल सकूँ,
मैं अपनी तकदीर।
सुबह निकलता खाली पेट,
करने को मज़दूरी।
मिल जाए काम तो है रोटी,
नहीं तो मेरी मजबूरी।
कड़ी धूप में पसीना बहाकर,
पीता नल का पानी।
पैरों में चप्पल नहीं है,
और पथरीली है नगरी।
बारिश बहुत रुलाती है,
मेरे काम को बहा ले जाती है।
दर-दर भटकता फिरता हूँ,
काम के लिए तरसता हूँ।
सर्दियों का गहन कोहरा,
आँखों को धुंधलाता है।
ठंड से काँपता है ये जिस्म,
रातों को ढूँढ लाता है।
मेरे इन हाथों में है,
सिर्फ मेहनत की लकीर।
नहीं है इतना कि बदल सकूँ,
मैं अपनी तकदीर।