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parag mehta

Drama

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parag mehta

Drama

हार

हार

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मैं तब भी हारा था,

मैं अब भी हारूँगा !

न मैं तब समझा था,

न मैं अब समझूंगा !


ये धोखे ये झरोखे,

कैसे हैं ये सारे मौके !

किस मिट्टी के शेर हो तुम,

किस झुठ में खोये हो तुम !


न ये खेल नया है,

ना ही इस खेल में तुम !

तब भी तो जानते थे,

अब भी जानते हो तुम !


इस रंगमंच के नाटक का,

एक बस किरदार हो तुम !

और क्या सोचते हो आखिर,

ऐ पुराने से मुसाफिर !


जब पर्दा ये फिर गिरेगा,

तब वही सब फिर घटेगा !

सब कुछ जान कर भी,

क्यों अनजान बने हो तुम !


इन्हीं सब जवाबों में,

छुपा कोई सवाल हो तुम !

पर संभल जाओ और जान लो,

थोड़ा सा ही सही पर पहचान लो !


वरना तब भी तो हारे थे तुम,

और अब भी हारोगे तो सिर्फ तुम !


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