हार कहाँ हमने मानी है
हार कहाँ हमने मानी है
मंज़िलों की तो मनमानी है
पर हार कहाँ हमने मानी है
जुनूँ देखकर मेरा अब तो
लोग कहें पागल दीवानी है
चले मंज़िलों की तलाश में
थकन नहीं हमने जानी है
मेरी धार को रोक न पाये
तेज़ गति से बहता पानी है
दुश्मनों का दम टूटा देख
मुझमे रंग केसरिया धानी है
जिसने चाहा जो उसे दिया
मम् प्रकृति जस कोई दानी है
आड़े आएगा मिट जायेगा
बन रुकावट न कर नादानी है।