हार का जश्न
हार का जश्न
आज मेरी हार का जश्न, मेरे अपने ही मना रहे थे
मुझे गड्ढ़े में गिरा कर, कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे
आज फिर से एक बार कौरव बने वो इतिहास दोहरा रहे थे
शब्दों का मायाजाल बुनने के अपने हुनर पर इतरा रहे थे
अपनों को ही दगा दे, क्यूँ लोग मुस्कुराते हैं
अपनी जीत का और अपनों की हार का जश्न मनाते हैं!
मानवता को शर्मसार कर के वो मुस्कुरा रहे थे
आज फिर कौरव बने वो इतिहास दोहरा रहे थे!
