हां मैं..... उसे
हां मैं..... उसे
हाँ,मैं उसे जानता ......हूँ।
जीवन में आ के जब,
जीवन को जाना।
तुम्हारे अहसास को,
तब से ही माना ।
तुम हो,
तुम्हें अपने भीतर तलाशता हूँ।
कभी अकेला पड़ भी जाऊँ।
तुम जिस रूप में भी,
मेरे पास आओ ।
मैं तुम्हें पहचानता हूँ।
मैं अपने अहसास से,
तुम्हें जानता हूँ।
मैं कुछ नहीं था...?
तुमने हाथ पकड़ कर,
कहाँ-कहाँ खडा़ किया है।
मैं पहचानता हूँ।
मैं तुम्हें जानता हूँ।
तुम तो जीवन के,
पल-पल में समाते हो।
मैं जब हार जाऊँ,
जान कर भी,
तुम से अनजान हो जाऊँ।
मुझे साहस दिला।
हार से जीत की ओर ले जाते हो।
मैं पहचाता हूँ।
जब हालातों से निकाल,
मेरी सोच को नये आयाम देते हो।
मैं पहचानता हूँ।
मैं तुम्हें जानता हूँ।

