गुरू कुम्हार शिष्य कुंभ है
गुरू कुम्हार शिष्य कुंभ है
हो गयी तूलिका और कल्पना सच,
जब मन से मिट गया था अँधियारा,
सोचा था कि पत्थर में मिलते हैं भगवन,
पर वो तो थे मेरे दिल में।
सोचा था कि हाथ की लकीर में
भविष्य होता है,
पर वो तो था कर्मों के हाथ में।
क्योंकि पहला सत्य,
पहला आत्मज्ञान,
मेरा गुरु था।
सोचा था 2020 में
चाँद पर आशियाना बनायेंगे,
पर नहीं, अपनी सफलता, अपनी विजय
के पीछे छिपी थी गुरु की डाँट।
सोचा था गुरु के बारे में
कुछ लिखने का,
पर दुनिया के सर्वस्व कलम
समाप्त एक शब्द गुरु से।
सोचा था पुनः
थी प्यास कुछ लेखन की,
पर समर्थ बिल्कुल नहीं था।
हाँ थी वो साखी प्रभावी,
क्योंकि पहला सत्य,
पहला आत्मज्ञान।।