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Anita Sudhir

Classics Others

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Anita Sudhir

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गुरु-शिष्य परंपरा

गुरु-शिष्य परंपरा

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सदियों से प्रचलित रही, गुरू-शिष्य की रीति

भारत की पहचान है, गौरवमयी संस्कृति।


आषाढी पूर्णिमा को, गुरू पर्व का मान

श्रद्धा से मस्तक झुके, चरणों में हो ध्यान।


दूर करें मन का तमस, करें दुखों का नाश

अध्यात्म की लौ जला, उर में भरे प्रकाश।।


गुरू बिना मन नहि सधे, भरे ज्ञान भंडार

मिले गुरू आशीष तो, भवसागर से पार।।


संदीपनी, वशिष्ठ गुरू, बारंबार प्रणाम

शिष्य रहे जिनके श्री कृष्ण और प्रभु राम।


गुरु द्रोणाचार्य को अँगूठा दिए एकलव्य

जग को बताया गुरु दक्षिणा का महत्व।


आरुणि रात भर लेटे रहे खेत की मेड़ पर

गुरु धौम्य का आदेश ले सिर माथे पर।


अपनी संस्कृति का स्वयं कर रहे उपहास

गुरु-शिष्य सम्बन्ध का होता जा रहा ऱ्हास।


पहले जैसी बात नहीं, शिक्षा प्रणाली मे,

कमियां नहीं गिने बल्कि, सुधारे कार्यशैली ये।


ट्यूशन लग रही अब दूसरी-तीसरी कक्षा से 

जनक के पास समय नहीं, समझे न शिक्षक से।


महंगी हो गयी पढ़ाई, बढ़ गये कोचिंग संस्थान

बन गयी मैकाले शिक्षा पद्धति महान।


डिग्री सबके पास हुई, पर ज्ञान नही मिलता

सीमित संसाधन और रोजगार नही मिलता।


गुरु और शिष्य दोनों मर्यादा पहचान लें 

वही सम्मान दिला ये परम्परा बचा लें।


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