गुनहगार
गुनहगार


ना जाने कितनी शिकायतों के शिकार हो गए
जितना दिल साफ़ रखा उतने ही गुनहगार हो गए
तसल्ली दिल की तरक्की की राह में नीरस हो गए
तमाम कसमों को निभाते खामोश सी ज़िन्दगी में अपराधी हो गए
दिल से छिपाएं बनती दरारों को भरते मरम्मत करते मिस्त्री हो गए
मिट्टी में घुलता काजल सा काला दाग़ दिल में सिला एक साया हो गए
थकान महसूस होता खोखले दावों में
रिश्तों को बुनते मजबूर हो गए
बन्द कर दिए दिल के दरवाज़े जहां दस्तक भी
अनसुनी आवाज़ में हम बेबाक हो गए
हर्षिता की पेशानी पर लिखना सुकून बस
बेरूखी समझो या समझ अब हम बेपरवाह हो गए
सोच कर दिल या दीमक लगे रिश्तों में सुधार
नाउम्मीदी की कहानी से कोसों दूर हो गए
रोशनी की कतारें में किरणों की चमक से बेदाग हो गए
यूं ही नहीं हर्षिता की नज़र में उतरता कोई
अब वहीं नज़र में एक अंगार हो गए।