गुलाब का जीवन
गुलाब का जीवन
तन से मैं इतना कोमल हूँ ,
काँटों की छैया पर सो जाऊँ,
उफ्फ न करुँ, मैं आह न भरुँ,
हर दशा में प्रसन्न हो जाऊँ ,
ऐसा है मेरा आचार व्यवहार।
प्रिये के बालों में गूंथा जाऊँ,
यह सोच अपने पर इतराऊँ,
क्षण-भर में भंगुर हो जाऊँ,
फिर भी गौरी के मन भाऊँ,
ऐसा है मेरा जीवन आधार।
मित्रों संग मैं खूब सराहूँ,
प्रेम युगल का गाना गाऊँ,
जन्म पर मंगल हो जाऊँ,
शव मृत्यु पर चढ़ाया जाऊँ,
ऐसा है मेरा प्यार सत्कार ।
मंदिर की शोभा बन जाऊँ,
नमाज़ अदा करने मैं जाऊँ,
ईसा चरणों में शीश नवाऊँ,
हर धर्म का मैं कहलाऊँ ,
ऐसा है मेरा जग संसार ।
