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Juhi Grover

Abstract

4.2  

Juhi Grover

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गुलाब और काँटों का साथ

गुलाब और काँटों का साथ

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याद आते  हैं  वो  लम्हें, वो  पल, बिताये दिन,

मग़र हर उजाले के बाद इतनी लम्बी रात क्यों ?

हर मरहम  के  लिए  दर्द का  हिसाब गिन गिन,

हर महकते गुलाब के पीछे काँटों का साथ क्यो ?


खुशी बाँटते बाँटते अब खुशी से यों दूर हो चले,

बेहिसाब खुशियों के 

;बाद ग़म की तन्हा रात क्यों ?

उजाला फैला रहे, कोने कोने को रोशन कर रहे,

ज्योर्तिमान किरणें बिखेरते दीपक तले अन्धेरा क्यों ?


गुलाब और  काँटों  का  ही तो साथ है ज़िन्दगी,

काँटों का ही साथ न हो, गुलाब की अहमियत कैसी ?

खुशी और  गम  का  एहसास ही तो है ज़िन्दगी,

मौत का अस्तित्व न हो, ज़िन्दगी की अहमियत कैसी ?


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