गुलाब और काँटों का साथ
गुलाब और काँटों का साथ
याद आते हैं वो लम्हें, वो पल, बिताये दिन,
मग़र हर उजाले के बाद इतनी लम्बी रात क्यों ?
हर मरहम के लिए दर्द का हिसाब गिन गिन,
हर महकते गुलाब के पीछे काँटों का साथ क्यो ?
खुशी बाँटते बाँटते अब खुशी से यों दूर हो चले,
बेहिसाब खुशियों के 
;बाद ग़म की तन्हा रात क्यों ?
उजाला फैला रहे, कोने कोने को रोशन कर रहे,
ज्योर्तिमान किरणें बिखेरते दीपक तले अन्धेरा क्यों ?
गुलाब और काँटों का ही तो साथ है ज़िन्दगी,
काँटों का ही साथ न हो, गुलाब की अहमियत कैसी ?
खुशी और गम का एहसास ही तो है ज़िन्दगी,
मौत का अस्तित्व न हो, ज़िन्दगी की अहमियत कैसी ?