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शशि कांत श्रीवास्तव

Tragedy

5.0  

शशि कांत श्रीवास्तव

Tragedy

गर्मी

गर्मी

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इस घनेरे वृक्ष के छाँव तले 

मिलता सुकून गर्मी से 

जबकि, है हवा मंद मंद 

वहीं सामने,

आग बरसती गर्मी है 

इस वसुधा पर 

खाली ..सूनी सड़कें 

दीखते,

इक्का दुक्का जीव 

कभी कभी ...


क्या मानव, क्या जानवर 

सभी छिपे बैठे हैं 

घने वृक्ष के छाँव तले 

वहीं गूंजती...कहीं दूर 

आवाज़ एक,

हथौड़े की खट्ट खट्ट सी 

देखा ....


दूर सड़क किनारे 

सूखे पर्ण रहित वृक्ष तले 

तोड़ती पत्थर ...वह 

कृषकाय सी बाला थी 

लिए, अपने शिशु को 

जो पड़ा है वहीं वृक्ष तले 

वह वृक्ष भी है एक ठूंठ 

जिस पर न एक भी पर्ण है 

केवल सूखी टहनियों का जाल 

जिसकी परछाई तले 

बिछा एक टुकड़ा कपड़े का 

गर्म ज़मीन पर

और ...

वह तोड़ती पत्थर 



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