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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

गर्जिले लोग

गर्जिले लोग

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लोग यहां गरज के लिये जीते हैं

लोग यहां गरज के लिये मरते हैं

जो लोग यहां पर ख़ुदगर्ज नही हैं,

वो यहां कुत्ते की जिंदगी जीते हैं


ऐसे लोगों की कोई इज्जत नही हैं,

वो हर कहीं पूंछ हिलाया करते हैं

भला में किनसे दोस्ती करूं,साखी,

अधिकतर लोग जो गर्जिले होते हैं


लोग यहां गरज के लिये जीते हैंं

लोग यहां गरज के लिये मरते हैंं

उनका कोई भी स्वाभिमान नही हैंं

वो स्वाभिमान को बेचकर जीते हैंं


उनका कोई मतलब नही ज़माने में,

बात न टिकती जिनके तहखाने में

ये तो सर्प से ज्यादा जहरीले होते हैंं

निंदा के बहुत बड़े कनखजूरे होते हैंं


साखी ऐसे गर्जिले लोगो से दूर रह,

चाहे तू कितने ही जमाने के गम सह

जो ऐसे गर्जिले लोगो से दूर रहते हैंं

वो ही वाकई में बनते यहां चीते हैंं।



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