गरीबों को क्या जाने
गरीबों को क्या जाने


ये बहुत ऊंचे-ऊंचे महल-चौबारेवाले
हम गरीबों के हृदय को क्या जाने ?
इनकी मृग-तृष्णा कभी मिटती नहीं,
इधर पेट की आग कभी बुझती नहीं,
ये अमीरी की दुकानें लगानेवाले
गरीबों की पेट-अग्नि क्या जाने
ये बहुत ऊंचे-ऊंचे महल-चौबारेवाले
हम गरीबों की भावनाएं क्या जाने ?
दिल से गरीब होते बहुत अमीर है,
अमीरों जैसे बेचते नहीं जमीर है,
ये फटे वस्त्रों से अमीरी दिखानेवाले,
इन फटे-वस्त्रों की इज्जत क्या जाने ?
ये भय ऊंचे-ऊंचे महल-चौबारेवाले
हम गरीबों के हृदय को क्या जाने
घर भले ही हमलोगों का छोटा है,
पर सबका इसमें निवास होता है,
ये अमीर लोग परिवार क्या जाने ?
जिनके हृदय के खत्म हुए खजाने
हम गरीब संयुक्त परिवार ही पहचाने
एकल परिवार सोचना भी पाप माने
ये बहुत ऊंचे-ऊंचे महल-चौबारेवाले
हम गरीबों के हृदय को क्या जाने ?
पर ये झोपड़ी के रोशनदान क्या जाने
जिनके महल में बंद है,उन्मुक्त उजाले
जिनके घर पे हरदिन पकवान बनते है,
वो क्या एकवक्त रोटी की क
ीमत जाने ?
ये बहुत ऊंचे-ऊंचे महल-चौबारेवाले
हम गरीबों के हृदय को क्या जाने ?
हे ख़ुदा!हम गरीब है,भले गरीब रहे,
पर इतनी दुआ है,दिल से अमीर रहे,
हे ख़ुदा!गरीबों का दिल तू ही पहचाने
ये लोग हमारा स्वाभिमान क्या जाने ?
ये बहुत ऊंचे-ऊंचे महल-चौबारेवाले
हम गरीबों के हृदय को क्या जाने ?
अमीर के आगे कभी तेरा नाम न लागे
ग़रीब नवाज से ही खुदा तुझे सब जाने
वैसे भी गरीबी में ही तुझे याद करते है,
इसलिये गरीबी में ही देता तू भक्ति दाने
ऐसी गरीबी पे साखी पल-पल मरता है,
जिससे मिले बालाजी की भक्ति तराने
ये बहुत ऊंचे-ऊंचे महल चौबारेवाले
हम गरीबों के हृदय को क्या जाने ?
अमीरी में रब से रहते अधिक अनजाने
गरीबी आती ही है,हमको यथार्थ बताने
कहता है,साखी सुनो सब लोग ये पाती,
गरीबों को मत सताओ तुम सब साथी,
ग़रीब को ठोकर देनेवाले बड़े पछताते है
जब उन के सर पड़ती है,खुदा की लाठी
गरीबों में जान बसती है,उस ख़ुदा की
गरीब को सतानेवाले रब को क्या जाने ?