"महिला दिवस"
"महिला दिवस"


महिलाओं के बगैर अधूरा है, यह संसार
यदि न होती महिला, कैसे बसता परिवार?
हर पुरुष उस मातृशक्ति का ही है, कर्जदार
9 माह तो माँ ही ढो सकती, शिशु का भार
हिंद संस्कृति, सुनो अब आप लोग विचार
यहां देवों के नाम आगे, देवी नाम है, स्वीकार
इतना पावन है, हमारी संस्कृति का व्यवहार
फिर क्यों हो रही, कन्या भ्रूण हत्या लगातार?
इसके पीछे कारण है, अशिक्षा का अंधकार
बेटी, तुलना में बेटों को मिल रहा ज़्यादा, दुलार
फिर भी देखो, बेटियां कर रही, सर्वत्र चमत्कार
कभी सावित्री, तो कभी लक्ष्मीबाई की तलवार
आज बेटे के जन्म हेतु, स्त्री ठहराते, कसूरवार
जबकि विज्ञान तो कहता है, यह सत्य विचार
लिंग निर्धारण हेतु पुरूष ही होता है, जिम्मेदार
21वीं सदी में भी न मिटी कुरीतियां, कई हजार
दहेज हेतु जलाते बेटियां, मानसिक बीमार
फिर कैसे मनाए, महिला दिवस का त्योंहार?
जब बढ़ रहा हमारे समाज पर दुष्कर्म भार
पहले समाज मे लाओ, स्त्री सम्मान किरदार
जिसने पढ़ाया, अपनी बेटियों को लगातार
उसके साथ परायों का भी मिटा, अंधकार
एक बेटी पढ़ी, 7 पीढ़ियों का मिटा अज्ञान
बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओं सुंदर होगा, संसार
एक दिन नही, हरदिन है, महिलाओं का वार
इन्हें सम्मान दो, जीवन होगा तेरा, गुलजार
जहां किया जाता, स्त्रियों का आदर-सत्कार
उस घर मे न होता, दुःख, क्लेश क्षणिक मात्र