गृहणी
गृहणी
मैं गृहणी घर पर करती क्या हूं ?
मैं तुम्हारे कमाए हुए रुपयों को,
भोजन में बदलती हूँ।
उस भोजन से तुम्हारा पोषण करती हूँ।
उस पोषण से तुम्हारा व्यक्तित्व निखरता है,
तुम्हारे जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है,
और तुम्हें एक बार फिर से रूपए कमाने का अवसर मिलता है।
मैं गृहणी घर पर करती क्या हूं ?
मैं अपने आत्मसम्मान को मार,
तुम्हारे पुरुष होने के अहंकार को जीवित रखती हूं।
स्वयं गुलाम बन तुम्हें राजा होने का अनुभव करवाती हूं।
अपनी प्रेम संतुष्टि को दरकिनार कर,
तुम्हें रात भर तुम्हारे पुरुषत्व का यकीन दिलवाती हूं।
मैं गृहणी घर पर करती क्या हूं ?
तुम्हारे बीज को नौ महीने कोख में रख,
अपने रक्त से सींच, सारी पीड़ा सह,
तुम्हें पिता कहलाने का अधिकार देती हूँ।
मैं गृहणी घर पर करती क्या हूं?
तुम्हारे दूर-पास के सभी रिश्तों को अपना मान,
प्यार से संभालती हूं।
अपने माता पिता को भूल,
तुम्हें जोड़े रखती हूँ तुम्हारे हर रिश्ते से।
तुम्हें मैं समाज में, एक सामाजिक
व्यक्ति का सम्मान दिलाती हूँ।
मैं गृहणी घर पर करती क्या हूं?
जब तुम्हारे अपने रिश्ते धोखा दे जाते है।
तब मैं सत्य की तरह साथ रहती हूँ तुम्हारे,
हर परिस्थिति में तुम्हारा संबल बन।
मैं जो करती हूँ, उसका मोल इस जन्म में ही नहीं,
अगले कई जन्मों तक नहीं चुका पाओगे।
एक दिन औरत बन अपना आत्मसम्मान मार,
दिन भर जी हजूरी करना।
आँखे नीची और ख्वाहिशों को पर्दो में बंद कर चलना।
नहीं कर पाओगे साहस उस दिन पूछने का,
मैं गृहणी घर पर करती क्या हूं ?
