गोधरा कांड
गोधरा कांड
हिंदू जला था ना मुसलमान जला था मजहबी दंगों में तो इंसान जला था
इंसान को इंसान की इज्जत कुचलता देख मंदिर में बैठा बैठा वो भगवान जला था
राम भक्त आ रहे थे बैठे एक रेल में उनको जलाने शैतानी हुजूम चला था
जैसे ही पहुंचे वो गोधरा के पास में घर पहोंचने का उन्हें सुकून मिला था
थोड़ी ही देर में वो मंज़र बदल गया सबके सर पे राक्षसी जुनून मिला था
लेके खुदा का नाम करते बात अमन की उनके ही हाथ बेगुनाह खून मिला था
तब तक उड़ गई ये बात सारे शहर में बदले को काफिला उधर तैयार मिला था
राम नाम लेके उन ने सारा शहर जलाया उसको ही गोधरा कांड नाम मिला था
हिंदू जला था ना मुसलमान जला था मजहबी दंगों में तो इंसान जला था
दोनों एक दूसरे से लड़ने थे लगे सारी तरफ माहौल थे बिगड़ने लगे
दोनों तरफ महिला बूढ़े और छोटे बच्चे खौफ के मारे थे जी बिलखने लगे
ऐसा कत्लेआम उस रोज हुआ था निर्मम हृदय भी देख उसे लगे पिघलने
कहीं मिट गया मां का बेटा कहीं बेटे की अम्मी इंसानियत के खून से सुर्ख थी जमीं
मीडिया कहे पुलिस और सरकार निकम्मी इसां सही होते तो क्या होती ये कमी
हिंदू जला था ना मुसलमान जला था मजहबी दंगों में तो इंसान जला था
कुछ शरारती लोगों ने काम यह किए दोनों ही मजहबों को गहरे घाव दे दिए
नेताओं ने दोनों तरफ ये बोल दे दिए जिनके मरे थे लोग उनको नोट दे दिए
जान के बदले में थोड़े नोट दे दिए नोट दे के बोले अबकी हमको वोट दे दिए
पैसे वाले तो बच गए थे सारे के सारे गए गरीब मौत के इस खेल में मारे
थोड़े दिन में पकड़े गए मुजरिम सारे सूरत से लगते प्यारे मगर थे वो हत्यारे
उनके उपर तो सालों अदालतें चली पर जो लोग थे मरे उन्हें ये क्यों सजा मिली
हिंदू जला था न मुसलमान जला था मजहबी दंगों में तो इंसान जला था।