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अभिषेक योगी रौंसी

Crime Inspirational

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अभिषेक योगी रौंसी

Crime Inspirational

नगरवधू-भाग 2

नगरवधू-भाग 2

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आज एक अरसे बाद फिर उस बस्ती के पास से गुजरना हुआ तो मधु की याद आई

और कदम ना चाहते हुए फिर उसी बस्ती कि तरफ चल पड़े.......... 


अब यहां पहले सा कुछ ना था सब बदल गया था 

पर अब मधुर से मिलने को ये दिल मचल गया था

 मैं उसे जिस कच्ची कोठरी में मिलके गया था 

उस कोठरी का अब पक्का मकान हो गया था

उस मकान की खिड़की से एक 10-12 वर्ष की लड़की मुझे बुला रही थी 

वहां गया तो ऐसा लगा मानो जैसे उसके रूप में मधु मुस्कुरा रही थी


साहब आप मुझे पुराने ग्राहक लग रहे हैं 

तभी तो आप मुझ में मधु तलाश रहे हैं


ग्राहक ...... ये तुम क्या........... में...में...में पत्रकार......... 


ओह अच्छा......... पत्रकार बाबू... 

क्या साहब आज फिर आप इंटरव्यू लेने आए हैं

या मेरी मां की तरह मेरे भी जख्म कुरेदने आए हैं


क्या तुम मुझे अपना नाम बताओगी 

कहां है तुम्हारी मां क्या मुझे मिलवाओगी


वो दीवार पे लगी मधु की तस्वीर दिखाती है 

कैसे हुआ उसका मुझको इंतकाल बताती है


वो किसी की अपनी थी उसके भी अपने थे 

वो भी पढ़ना चाहती थी उसके भी सपने थे


क्यों बचपन खोकर उसे नगरवधू बनना पड़ा

क्यों उसे ये देह व्यापार का कर्म करना पड़ा


हर रोज झेला उसने कितनों की हवस को 

हर रोज बर्दाश्त किया अनचाही बहस को


विरोध किया तो जूते-डंडों से पिटवाया गया 

मजबूर हो झुकी तो हर रोज लूटवाया गया


जालिमो ने निकाली उसकी चमड़ी से दमड़ी 

और रोड किनारे फेंक दिया जब हालत उसकी बिगड़ी


रोड किनारे बेजान पड़ी वो बदकिस्मत दर्द से कराह रही थी 

मगर अभी भी थी शर्म वो लोगों से अपना मुंह छुपा रही थी


अब वह अपनी सांसों के थमने का वक्त देखती थी

अगले जन्म मोहे बिटिया ना कीजो भगवान से कहती थी


अगले दिन उसकी लावारिस लाश को कुत्ते चाट रहे थे 

और धन के लालची लोगों की वजह से वो बेटी से नगरवधू बनी 

उसी लालच के मारे लोग उसकी लाश को बदनाम कह अखबारों में छाप रहे थे

बदनाम कह अखबारों में छाप रहे थे... 

To be continue..... 


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