दोस्ती और दुश्मनी
दोस्ती और दुश्मनी
कभी-कभी जो पक्के दोस्त होते हैं उनमें से एक के मन में दुर्भावना जाती है तो वह दोस्ती को भी नहीं ध्यान में रखता है और उसके ऊपर लोभ लालच इतना हावी हो जाता है कि वह अपने प्यारे दोस्त को जिससे बचपन से दोस्ती निभाई हो वह भी धोखा देने से नहीं चूकता इसी पर मेरी सच्ची कविता
यह दोनों थे बहुत प्यारे दोस्त।
दोस्ती इतनी प्यारी थी कि।
लोगों की आंखों में खटकती थी।
एक के मन में दोस्ती की इज्जत थी
तो दूसरे का मन वह नहीं जानता था।
और सुनिए यह दास्तां
दो प्यारे दोस्तों की जो बदल गई दोस्ती से दुश्मनी में।
कभी थे दोनों प्यारे दोस्त
रहते थे हमेशा साथ साथ।
कपड़े भी होते थे दोनों के एक सार।
बहुत सालों की थी दोनों की दोस्ती।
घर वालों को भी था उनकी दोस्ती पर नाज।
मगर न जाने क्यों दोनों की दोस्ती में आ गई दरार।
हुआ कुछ ऐसा पढ़ाई के बाद दोनों ने साथ बिजनेस करने का किया करार ।
उसी में एक दोस्त के मन में आ गया विकार।
जब दूसरा दोस्त शादी के बाद गया अपने हनीमून पर।
तब पहला दोस्त ने किया उसके पीठ पर वार।
सारी जमा पूंजी लेकर वह हो गया फरार।
दूसरे दोस्त ने आकर जब देखा सब नजारा मांगने वालों की फेहरिस्त देखी उसने अपने अकाउंट को संभाला।
तब उसको सब कुछ समझ में आ गया ।
उसको बहुत ढूंढने की कोशिश करी मगर वह कहीं नजर ना आया।
क्योंकि वह तो उसको धोखा देकर जो भाग गया।
इस तरह से एक पक्की दोस्ती जरा से पैसे के पीछे दुश्मनी में है बदल गई।
अगर एक दोस्त दूसरे दोस्त की पीठ में छुरा भोंकने लगे तो दोस्ती के नाम पर कलंक लग जाता है।
और लोग सच्ची दोस्ती को भी संदेह की नजर से देखने लग जाते हैं।
इसीलिए दोस्तों दोस्ती करो तो अच्छी तरह निभाओ।
दोस्ती में रिश्तों में एक दूसरों के साथ पैसों को ना तुम लाओ।
तभी दोस्ती अच्छी चलती है नहीं तो अच्छी अच्छी दोस्ती में भी पड़ जाती है दरार।
और बदल जाती है दोस्ती दुश्मनी में हर बार।
कहती है विमला दोस्ती और रिश्तों में पैसे का लेनदेन ना हो तो ही अच्छा है
नहीं तो खास दोस्त को दुश्मन बनते नहीं लगती है। यह बहुत देखा भाला किस्सा है।
