पक्षपात
पक्षपात
जल जाती हैं बहुयें बेटियॉं नहीं जलती ,
ये अग्नि भी ना देखो बहुत पक्षपात करती,
अग्नि की ज्वाला धधक कर जीवन लील रही,
वो प्रचण्ड रूप धर कर दावानल में बदल रही..!!
क्यों कर कोई पिता इस हद तक मजबूर होता है,
देखता है अत्याचार को फिर भी खामोश रहता है,
क्यों दी जाती है आवाज ना उठाने की हिदायतें,
क्या दोगला समाज किसी जान से बढ़कर होता है..!!
क्यों कर बदलती नहीं दहेज लोलुपों की भावनाएँ,
क्यों नहीं देख पीते बहुओं में बेटियों की परछाइयॉं,
जायेगी एक दिन तुम्हारी भी बेटी किसी की बहू बनकर,
यह कर्म का वृत्त है परिधि पर गोल गोल घूमता है..!!
जो आज बो रहे हो वह वृक्ष कल फलेगा-फूलेगा,
दानव समाज की भेंट किसी पिता का कलेजा चढ़ेगा,
सुन सुन कर ताने दुखों की दास्तान तकिया कहते हैं,
जिस पिता ने दे दिया कोहिनूर उसे "क्या लाई " बाण मिलते हैं..!!
कब थमेगी यह जानलेवा रस्म जो दिखावटी है,
थोड़े सी माया के वशीभूत लिखी मृत्यु की परिपाटी है,
अब तो घर से विदाई होती है इसी शंका के साथ,
लौटेगी कि नहीं अब जो प्यारी बेटी हमने ब्याही है ..!!
बड़ी होती बेटियों को देख कलेजा धक धक करता है,
रात्रि को यह भयावह स्वप्न सोने नहीं देता है,
काश रूक जाता वक्त बड़ी ना होतीं बेटियॉं हमारी,
ऑंखों में भर ऑंसू एक पिता भीतर से टूटता है..!!
चढ़ा दो सीधा सूली पर या गोली से उड़ा दो ,
अब तो इस कड़क कानून को कोई तो बना दो,
सख्त कदम लेना होगा इस संगीन होते जुर्म का,
नहीं तो थमने वाला नहीं है प्रहार इस दावानल का ..!!
