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Shristi Singh

Crime Inspirational

4  

Shristi Singh

Crime Inspirational

नारी तुम बोलो

नारी तुम बोलो

2 mins
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नई आओ बोलो .....

अब तक जो पुरखों के पीछे,

अब तक जो मरघट के पीछे,

अब तक जो घुंघट के पीछे,

अब तक जो मर्यादा के पीछे,

धक रही है जो खुद के मुख को छोड़ के तुम बोलो,

नारी तुम बोलो।


सब से पहले पूछो प्रश्न उन परिवारों से जाकर

रोए जो बेटी को पाकड़ और हंसे पुत्र को पकड़।

नारी होकर नारी को ही सोचा सबसे छोटा,

नारी होकर नारी को ही क्यों लगी वह चुभने,

भेद किया जब ईश्वर ने नहीं तो भेद किया क्यों तुमने,

नंगा भेज दिया दोनों को ही कुदरत ने। 


नारी तुम बोलो पूछो उनसे जिसने शिक्षा में भेद किया, 

लड़की को चूल्हा पर भेजा लड़के को कक्षा में,

नारी पूछो उनसे जिन्होंने दोनों को पढवाया

लेकिन घर में लड़की से ही घर का काम करवाया। 

लड़कों को दिया आजादी जितनी लड़कियों को क्यों दिया ना ?

दोनों को साथ रहकर क्यों न सिख वाया जीना ?


घुट घुट कर जीना भी कोई जीना होता है क्या ?

बोलो नारी तुम बोलो। 

वर्षों से एक चित्र रखा है विष्णु और लक्ष्मी का,

पैर दबाती पत्नी और देखो आराम पति का,

अनुचित है यह ऋतियां नहीं तो और भला क्या बोल क्या

आंखें बंद करें हम और साथ इन्हीं के हो ले। 

बुरखा, घूंघट सब पड़ता क्यों करें हम ?


अंतिम में नारी तुम बोलो खुद से अपने पथ पर खड़ी हो

या पुरुषों के पथ पर चल रही हो ? 

नारी तुम बोलो,  नारी तुम बोलो . . . 


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