गणतंत्र हमारा
गणतंत्र हमारा
स्वतंत्र अपना देश हो गया गणतंत्र,
एक संविधान और एक शासन तंत्र,
अनेकता में एकता इसकी पहचान,
और समानता ही बनें इसका मंत्र।
पर दुखद है व्यवस्था इसकी सारी,
राजनीतिक दलों में होती मारा मारी,
कुर्सी के लिए टूटते सारे मानक,
और पिस रही निरीह जनता बेचारी।
ऊँच नीच के बीच बढ़ती है खाई,
जनता को लूट नेता खाते मलाई,
जाति पाँति के बीच खींच गयी दीवार,
अपने फायदे के लिए होती लड़ाई।
भ्र्ष्टाचार का बढ़ता जा रहा बोलबाला,
जरूरतमंदों को नही मिलता निवाला,
बाल श्रम और अनेक कानून टूटते हैं
देश के विकास का दिया जाता हवाला।
मन में एक प्रण सदा ही आप करें,
देश के लिए जियें, देश के लिए मरें,
अमर रहे गणतंत्र हमारा विश्वपटल पर,
जन गण मन कहें बिना कभी डरे।