गंगा की पुकार
गंगा की पुकार
भगीरथ की कठोर तपस्या ने
धरती पर गंगा को उतारा
इनके तीव्र वेग को शिवशंकर ने
अपनी जटाओं में संवारा
अवतरित हुई फिर धरती पर गंगा
लेकर स्वच्छ निर्मल धारा
जनजन के जीवन को इसनें
नव उर्जा से संचारा
पावन निर्मल गंगधार से
संसार उज्जवल हो गए
गंगा माता के दर्शन से
मन सबकें पुलकित हो गए
हिमाद्री से महोदधि तक,
गंगा ने स्वरूप अपना फैलाया,
जन जन के दिलों में इसने,
आस्था और प्रेम जगाया
पूरे भारतवर्ष में गंगा
जल से खुशहाली लाई
अलग अलग जगहों पर
इसने अपनी पहचान बनाई
आज जगत के दुर्व्यवहार से,
दूषित होती जा रही गंगा,
अमानवता का त्रास झेलती,
अपनी व्यथा सुना रही गंगा
शायद कोई भगीरथ आ जाए
गंगा राह निहार रही
सबकों जीवन देने वाली
मां गंगा आज पुकार रही
आज शपथ ले लें गर हम
पावन गंगा को ना दूषित होने देगें
युगों तक पावन गंगा से
जीवन नैया पार लगेगें!
