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Ranjana Mathur

Tragedy

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Ranjana Mathur

Tragedy

गंगा की कहानी खुद उसकी जुबानी

गंगा की कहानी खुद उसकी जुबानी

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मैं गंगा मैया हूँ तेरी, क्यों मुझे भुलाए बैठा है

मेरे रीते हुए इस तन को, क्यों तूने न समेटा है।

मैं गंगा मैया हूँ तेरी, क्यों मुझे भुलाए बैठा है।

उद्गम स्थल गंगोत्री है हूँ मैं नगाधिप की तनया

भारत के जन जन में शुचि गंगे मैं हूँ सर्वपूज्या

अंत समागम यही है वारिधि से मेरा प्रणय मिलन

कई भगिनी सरिता सखियों को निज में मैंने

दिया श्रयण। 

दुर्गम दुरूह प्रपाथ पाषाण युक्त कंटकाकीर्ण 

है मार्ग मेरा


महाराज सगर के यज्ञ में, हुए हत साठ हज़ार प्राणी

तो फिर उद्धारों को उनके, भगीरथ ने भी थी ठानी।

ब्रह्मा जी के कमंडल से मैं, जटा में शिव के आई थी

और तप से भगीरथ के, भोले ने हिमालय में बहाई थी।

तभी से अद्यतन कल-कल निनादों, सी मैं सदा

प्रवाहित हूँ

सकल संसार मेरा पुत्रवत, मैं तुम सब में समाहित हूँ।

सारे जग के दोष-पापों को, मैंने स्पर्श मात्र से मेटा है

मैं गंगा मैया हूँ तेरी, क्यों मुझे भुलाए बैठा है।


युगों-युगों से पुत्रों तुम को, मैंने अपने नीर से सींचा 

संतति हो तुम सब ही मेरी, कोई ऊंचा न कोई है नीचा 

मैं तो प्राणी मात्र के दुख दर्द, और पीड़ा को मिटाती हूँ 

करूं उद्धार मैं निज जल से, तुमको मोक्ष दिलाती हूँ। 

मुझको यदि तुम स्वच्छ रखोगे, बेटा सुख तुमको ही होगा 

मल और मैला रहित शुद्ध जल, तुमको कोई रोग न होगा 

सकल जगत के प्रदूषण में, बेटा तुमने मुझे लपेटा है

मैं गंगा मैया हूँ तेरी, क्यों मुझे भुलाए बैठा है।


हैं मेरी कई और भी बहनें यमुना गोदावरी चंबल नर्मदा

सब हैं माता सम प्राणदायिनी, रखना सबको स्वच्छ सदा

नदिया मात्र न जल दायिनी, अपितु जीवनदाता होती हैं 

दूषित करके कर दी है दुर्गति, कहने को माता होती हैं। 

मेरा मार्ग प्रेम का पथ है मेरे गुण हैं मधुर सौशील्य

सबके हित में मेरा जल पावन उद्वेलित नेह झलकाय।

रखना तीरे उनके हरे-भरे, कहती वह तुम को बेटा है 

मैं गंगा मैया हूँ तेरी क्यों, मुझे भुलाए बैठा है।



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