ग़म
ग़म
तुम ऐसे क्यों मुरझाए से रहते हो
क्या ग़म है जिसको छुपाये से रहते हो
तुम बेशक कभी इसे जाहिर नहीं करते हो
सबसे छुपा कर बहुत महान तुम बनते हो
माना रखते हो सदा चेहरे पर मुस्कान
पर आंखों को क्यों डब डबाये से रहते हो
क्या ग़म है जिसे…..
क्यों तुम य़ह सब मुझसे भी छुपाते हो
क्या दुनिया की आंखों से खौफ खाते हो
माना है हमनें दोस्त एक दूसरे को
फिर क्यों दोस्ती की तौहीन कराते हो
क्या ग़म है जिसे…..
तुम्हें अंदाजा भी नहीं तुम्हें ऐसे देखकर
इस दिल को कितनी तकलीफ होती है
रोते हो तुम दिल को चोट मेरे होती है
क्यों मेरे दिल को इस तरह सताते हो
क्या ग़म है जिसे…..
तुमने जाना भी नहीं और समझे भी नहीं
इस दोस्ती के क्या क्या मायने होते हैं
सच्चे दोस्त दुनिया बहुत कम होते हैं
क्यों दोस्ती की साख को दाव पर लगाते हो
क्या ग़म है जिसे…..
कह भी दो जो दिल में है ग़र कोई ग़म
धो डालो अपने दिल के हर गहरे ज़ख्म
छू लेने दो मुझे अपने सब नासूर बने घावों को
क्यों दोस्ती में इतनी औपचारिकता निभाते हो
क्या ग़म है जिसे……
दुनिया को किसी की परवाह ना थी ना है
इसने तो सदा ही लोगों को कटघरे में रखा है
इसने तो सच्चे लोगों को हमेशा ही ठगा है
क्यों लोक लाज की इतनी चिंता किए जाते हो
क्या ग़म है जिसे…..