तलाशते अवसर
तलाशते अवसर
कितने बोझिल थे
वो समय,
तुम्हारे इंतजार में।
मेरे लिए
तुम्हें ढूंढना
बड़ी चुनौती रहा।
और जब तक जाना
तुम तक पहुँच का रास्ता
तब तक देर हो गई थी
तुम्हारी एक आवाज खातिर
दिन रात एक किए रहा
कब आओगे?
अब आओगे
तब आओगे
जब आओगे
मुझे पाओगे
सब लक्ष्मण-रेखायें
मेरे लिए मिट गयीं थीं
जब कि मैं खड़ा रहा
मेरी भावनाओं को
उड़ाने को
वो एक शाम आई
मैं बहका हुआ था
जब तुम आई
खुला आकाश मिल गया है, तो
क्यों न जी भर उडूँ?
मेरे सोच स्वछंद थे
जब तुम आई
बहकी नजर
बहके विचार
बहके कदम
वो शाम के थे
तुम आई
मुस्कुराई
और चली गई
हां ! तुम ही तो थी
मेरे किस्मत के
मजबूत दरवाजे को
खोलने को आई थी
जब मैंने
अपने हाथों से
तुम्हारे मुँह पर
अपने किस्मत के दरवाजे को
बंद किए थे
तुम्ही तो थी
हां ! अवसर तुम्हीं तो थी।