STORYMIRROR

Ak Rai

Others

3  

Ak Rai

Others

ठंड से आजादी

ठंड से आजादी

1 min
244

ठंड से कांपता हुआ,

कंबल में दुबका मैं।

लाचार वसंत पर, 

जोर से चिल्लाया। 


कब आओगे तुम, 

कब सर्दी से बचाओगे तुम। 

पूस की रात से, 

कब आजादी दिलाओगे तुम। 


उदास मन से, 

वसंत ने मुँह खोला। 

अपनी लाचारी पर, 

आज खुल कर बोला। 


सर्दी है कि जाती नहीं, 

बताओ कैसे आऊँ मैं। 

कोहरे में वासंती छटा, 

कैसे बिखराऊँ मैं। 


कोहरे की घूंघट को,

हौले से चढ़ाकर।

सफेदी की चादर ओढ़े,

और चेहरे को चमकाकर।


आसमां से दुलार पाकर, 

धरती को उसने धड़का दिया।

कड़कती ठंड लिए,

पूस ने सबको डरा दिया।


धूप कहां जाने लगी, 

ओस भी सताने लगी। 

मौसम की तैयारी देख,

जनजीवन घबराने लगी।


कड़कती ठंड ने, 

हवा से हाथ मिलाया है। 

इस मौसम से लड़ने को,

हमने भी आग जलाया है।


मौसम ने ली है करवट, 

समय बदलने वाला है। 

गन्ने की मिठास बढ़ी है,

गुड़ का मौसम आने वाला है।


सताने लगी हवा अब, 

पछुवा बनकर।

माघ का मौसम आया है, 

अब तो बाघ बनकर। 


अरे! बातों-बातों में दिन बड़ा,

रात कुछ कम होने लगी है। 

गुलाबी ठंडक लिए,

वसंत बयार बहने लगी है। 


मधुर मिलन होने को है, 

खड़ी शोभा सकुचाने लगी है।

लौकिक छटा निहारे अंबर, 

अब तो धरती मुस्कुराने लगी है।



Rate this content
Log in