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सदी का कलंक

सदी का कलंक

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इस देश ने या यूँ कहें 

उसके परिवेश ने 

नेताओं ने या यूँ कहें 

आदर्श अभिनेताओं ने।


गंगा का क्या हाल किया है,

और उस पर से ये हद किया है

लाचार बीमार बिहार पर ,

सारा ठिकरा ठोक दिया है।


राजनीति ने क्या खेल खेला है

अमृत में विष को घोल दिया है,

धन की भीषण भुखमरी में 

धनवानों को खुला छोड़ दिया है।


गंगा स्वयं समय है, 

गंगा स्वयं ही काल है ,

समय देखने का पैमाना 

गंगा आज स्वयं बेहाल है।


यूँ तो गंगा का समय भी 

स्वयं विस्तृत आकार है ,

गंगा हर युग में हर काल में 

लेती चरणबद्ध विस्तार है।


विल्सन के काल से 

आज हम जूझते हैं,

गंगा यात्री के खोज को 

आज हम समझते हैं।


यह सन्तावन का काल था 

विल्सन ने हिमालय को

टिहरी राजा से

सलाना मोल लिया था।


तरक्की की दौड़ ने 

विकास के ही नाम पर 

आबोध वन प्राणियों को 

वन के साथ खा लिया था।


बन्धन युक्त हुई गंगा 

काटले के काल को 

गुलामी में जकड़ी गंगा 

आजादी के साल को।


गंगा को जब पहली बार 

हरिद्वार, नरोरा में बाँधा गया 

गंगा जल को लुट कर 

गंग नहर में डाला गया।


अब आज के काल को

देखो गंगा के हाल को

स्वार्थ में डूबी इस दुनिया की

समझो राजनीतिक चाल को।


पुल बने हैं, बाँध बने हैं 

और जुड़ गए गंदे नाले

जीवनदायिनी मरणासन्न पड़ी है

गावत अरूण देख गंगा की हाला।


खेत बाँझ होने लगे हैं 

बाढ़ विभीषिका नाच रही है

हवा पानी में जहर भरे हैं

जनजीवन कराह रही है।


गंगा को बांध कर 

लोग स्वयं को बांध रहे हैं 

गंगा जल अलग हुई तो

घर भी टूटने आज लगे हैं।


गंगा प्रदूषित हुई जब 

देश प्रदूषित होने लगा है

आज हर कोई प्रदूषित है

जीवन कलंकित होने लगा है।


गंगा पर गाद जमी तो 

वैभव भी जम गई है

गाद ही तो काल है 

जनता बाढ़ से बेहाल है।


चौदहवीं सदी का व्यवस्था से

इक्कीसवीं सदी बेहाल है 

विकास के सभी शिकारी 

इसीलिए बिहार का ये हाल है



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