पापा
पापा
अब कैसे बयां करू पापा
तुम्हें कितना याद मैं करती हूँ
एक दिन ऐसा नहीं जाता
जब तुमको मिस ना करती हूँ
मैं तो तुम्हारी थी लाडली बिटिया
अपनी आँखों का तारा तुम कहते थे
तेरे बिन ये घर सुना है
कह कह कर य़ह रोते थे
मैं गर कहीं चली जाती तो
हर पल घड़ी को ही तकते थे
छोटे छोटे मेरे कामों की
तारीफ़ करते नहीं थकते थे
माँ जब मुझको डांटती थी
तो गुस्सा बहुत हो जाते थे
और कभी कभी तो गुस्से में
खाना तक नहीं खाते थे
फिर ऐसा अचानक क्या हुआ
क्यों इतनी हुयी रुसवाई
बिदा किया ससुराल आ गयी
क्या इसलिए हो गयी जुदाई
सुध लीनी ना तुमने मेरी
क्या इतनी कर दी परायी
इतने दिन मे तुमको मेरी
क्या याद कभी ना आयी
गलती क्या थी मेरी
मुझे बता तो दिया होता
कोई नाराजगी थी ग़र मुझसे तो
बचपन की तरह डांट दिया होता
कम से कम इस तरह से
मेरा दिल तो नहीं दुखता
रिश्तों की इस खिंचातानी में
मेरा मायका तो नहीं छूटता
गर खता हुयी है मुझसे तो
माफ़ मुझे तुम कर देना
एक बार बचपन की तरह
फिर हाथ फेरकर सिर पर
आशीर्वाद मुझे तुम देना
बच्चे तो आखिर बच्चे ही होते
गलती करना उनका लाजमी है
बड़ों का काम है बड़प्पन दिखाकर
माफ़ कर देना ही उनका बस सही है।
