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गजल

गजल

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सांसों में बसकर मेरी तुम जिंदगानी हो गई 

सच कहूँ इस श्याम की तुम राधारानी हो गई


चाँदनी के साथ जब चाँदी सी मुस्काई जो तुम

बिजलियों सी तुम चमक कर आसमानी हो गई


आँख मैंने बंद कर एकांत में सोचा था जब

साधिका सी होके तुम मीरा दीवानी हो गई


गीतों-गजलों में मेरे अक्सर प्रिये

खुशबुओं सी तुम बिखर कर रातरानी हो गई


मन मरुस्थल और बंजर दिल की इस धरती पे तुम

पहली बारिश का सुखद कोई मुझपे पानी हो गई 


पतझडो के बीच सर्दी से ठिठुरते तन पे तुम

धूप सी कोमल सुखद कितनी सुहानी हो गई


बादलों सी याद तेरी आँखो में छाई थी जब 

तब कहूँ अश्कों की मेरी तुम कहानी हो गई


तुमको पा कश्मीर सा भोपाल सा खिलता हूँ मैं

सच कहूँ तुम ही प्रिये मेरी राजधानी हो गई


आँख, सांसे औऱ धड़कन उसके ही रंग में रंगी

सच ऋषभ वो तो यहाँ तेरी निशानी हो गई


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