गज़ल
गज़ल
ये सूरज मुझे अब जलाता बहुत है,
तुम्हारी ये यादें दिलाता बहुत है।
जमाने में उसको नहीं दर्द कोई,
दिखाने को अक्सर वो हँसता बहुत है।
हमारे बिना अब बहुत हैं वो तन्हा,
वो बातें दिलों की छुपाता बहुत है।
हमें याद करके वो नगमें सुहाने,
दिलों ही दिलों में गुनगुनाता बहुत है।
ये हम जानते हैं हमें ये पता है,
उमा अब वो आँसू बहाता बहुत है।