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Uma Vaishnav

Others

4.0  

Uma Vaishnav

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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दीप से दीप की लौ जला दीजिए।

रात को आज दिन फिर बना दीजिए।।

रोशनी प्यार की फिर दिखे हर तरफ,

आज आशा नई फिर जगा दीजिए।।

रोज उम्मीद  के साथ उड़ना हमें,

दायरा आसमाँ का खुला दीजिए ।।

चाँदनी से भरी रात बीते नहीं,

चाँद से हाथ अपना मिला दीजिए।।

राह काँटों भरी फिर मिलेगी उमा,

हौसलों से कदम फिर बढ़ा दीजिये।।



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