ग़ज़ल...
ग़ज़ल...
एक काग़ज़
उस काग़ज़ पर नज्म है
नज्म में माँ का जिक्र
माँ की आँखों में आंसू है
उस आंसू में सारा जहा है
उस जहां में मोहब्बत के अलावा कुछ नहीं
उस मोहब्बत में मैं हूं
मैं बैठा एक किनारे पर
जहा नदिया शोर कर रही है
मछलीया कूद रही है
पेड़ - पक्षी गुन-गुना रहे है
सब कुछ बेहतरीन से बेहतरीन है
मैं लिखने बैठा एक नज्म
जिसमें सारा जहा है
वो जहा माँ की एक आंसू में
वो आंसू माँ की आँखों में
यह सब सिर्फ एक काग़ज़ में

