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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Fantasy Thriller

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Fantasy Thriller

ग़ज़ल...४

ग़ज़ल...४

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इस दर्द-ए-दिल की कहॉं है महकमा देखो ज़रा।

क्यूं इश्क़ में ये ग़मज़दा सी ज़मज़मा देखो ज़रा।।


सोचा न था ये हादसा यूं जान लेगा आज ही।

सबकुछ लुटाते नेक दिल में ग़म जमा देखो ज़रा।।


दिल दूसरों का रौंद कर वो खुश हुए थे जो कभी।

है फर्श पर वो क्या करे खाली अमा देखो ज़रा।।


मेरी मुहब्बत को दगा दे शामियाने में रहे।

फिर आशियां उनका अभी क्यूं बे-शमा देखो ज़रा।।


अक्सर दरख्तों को झुका देखा ज़हां के प्यार में।

अब कौन ले आया गुमां ख़ुद के तमा' देखो ज़रा।।


सारे गुनाहों का सुना है फैसला होगा यहीं।

लो वक्त की दहलीज़ पर गाती समा' देखो ज़रा।।


देखा सदा गुल नोचने का दर्द ही 'गुलशन' सही।

ज़ानां ज़रा हमराज़ सी बेज़ान मा' देखो ज़रा।।


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