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Umaji Patil

Fantasy Inspirational

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Umaji Patil

Fantasy Inspirational

बचपन से पचपन...

बचपन से पचपन...

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बचपन बीता बरगद के छाव में ,

सहलाया तुलसी ने दर्द भरे घाव में।


दादा-दादी के प्यार में, नाना-नानी के दुलार में,

स्कूल बीता सहमा-सहमा टिचर के डरकर


कालेज में नए-नए मित्र जुडे ,नए-नए भाव गढ़े,

जीवन के श्रावण मास मे मन नव-यौवन की

मद-मस्ती में झूला झूले


प्रेम की फुहार से उत्साहित मन नव सृजन को प्रेरित ,

हर दम चले परीक्षाओं का दौर,

कभी लगती क्षण में नैय्या पार,

कभी-कभी छूटे मझधार।


जब हो गया रोजी-रोटी का जुगाड़,

तो हो गया गृहस्थी की ओर अग्रसर ,

जीवन-साथी का आगमन हुआ।

जब जागृत हुआ पितृभाव ,

फुहड़ अल्हड़ता ने करवट ले ली ,

तो जिम्मेदारी का भी अहसास हुआ।


इसी बीच पुराने कुछ छूट गए ,

नए कुछ जुड़ गए।


बच्चों के संग बच्चे बन ,

कर्तव्य भार कुछ हलका-हलका महसूस होता रहा।


कलि का कालचक्र बढ़ता रहा ,

शिक्षा-नौकरी -शादी के फेरे में बँधकर ,

बच्चे जा बसे हम से दूर।


पचपन की उम्र में हो रहा कर्तव्य निवृत्ति का बोध ,

आगे सुखमय जीवन की आस ,न हो वृद्धाश्रम में वास।


उमड़ती है रह-रहकर मन लुभावन यादें बचपन की,

मन-मस्तिष्क-हृदय को सदैव हर्षोल्लासित करती।



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