ग़ज़ल....14
ग़ज़ल....14
गीत लय-- मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल..
मायने-- शामियाना-तंबू, ज़ुस्तज़ू-तलाश
'आमियाना-मामूली, ताज़ियाना-चाबुक)
कफ़न को ओढ़ इसको शामियाना कौन कहता है ।
ग़मों की ज़ुस्तज़ू को 'आशिकाना कौन कहता है ।
तुम्हारी ख़्वाहिशें मिलती कहॉं बाज़ार में कह दो,
ख़रीदे इश्क़ को फिर 'आमियाना कौन कहता है ।
सदाऍं चीख़तीं चिल्ला रहीं हैं बेवफाई में,
समां ग़मग़ीन को अब सूफियाना कौन कहता है ।
सलाखें बंदिशों के तोड़ आई थीं कभी तुम भी,
कशिश-ए-'इश्क़ को फिर ज़ाहिलाना कौन कहता है ।
गले से वो लिपटती जिस्म से जाकर मिली ऐसे,
सुखन-ए-दास्तां को ताज़ियाना कौन कहता है ।
ज़नाज़े पर मिरी यूं पत्थरें अब तुम न बरसाओ,
तुम्हें इन पत्थरों को आज़माना कौन कहता है ।
गुले-'गुलशन' कभी गुलज़ार होगा अब नहीं जानां,
अदाओं से मरे को भी जगाना कौन कहता है ।