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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

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कवि धरम सिंह मालवीय

Drama

गीत दिलरुबा

गीत दिलरुबा

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ओ दिलरुबा दिलरुबा दिलरुबा 

 तू हैं मेरी दिलरुबा दिलरुबा 


 इक़ मुसब्बिर की तू तस्वीर हैं

मैं समझता हूँ मेरी तू तक़दीर हैं

प्यार से जो बने तू वो तदबीर है

मैं हूँ रांझा तेरा , तू मेरी हीर हैं

तू बहुत हम नशी तू हैं हम नवा

 ओ दिलरुबा दिलरुबा दिलरुबा  


दर्द भी इक वफ़ा की निशानी बनें

जो कुर्बान हो वह जवानी बने

गुप्त कुछ न रहे जाफरानी बने

आओ हम तुम वफ़ा की कहानी बने

आज खाओ कसम हम न होंगे जुदा

ओ दिल रुबा दिल रुबा दिल रुबा 


रास्ता जो बदल कर सफर जाएगा

वो नज़र से हमारी उतर जाएगा

वो रूसवा मोहब्बत को कर जाएगा

जो राह ऐ मुहब्बत में डर जाएगा

तू न होना ख़फ़ा तू न होना जुदा

ओ दिलरुबा दिलरुबा दिलरुबा


 जमाने की हम हर कसम तोड़ दे

रुख हवाओं का हम सनम मोड़ दे

मौत का भी यहाँ पर भरम तोड़ दे

तुमको छोड़े नहीं जीना हम छोड़ दे

इश्क का अब धर्म ने नग्मा पढ़ा

ओ दिल रुबा दिल रुबा दिल रुबा



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