गिद्ध
गिद्ध
भेड़िए कविता सुना रहे हैं,
गिद्ध के सिर पर सजे ताज पर
और गिद्ध नोच- खा रहा है
गरीब, भूखे, बीमार, कमजोर लाचारों को....
कोई मजदूर- बेरोजगार उठाए आवाज तो,
वो सहज ही सम्मान उपाधि पा जाता है -
असामाजिक तत्व, देशद्रोही, अर्बन नक्सली,
वामपंथी, आतंकी, नक्सली, खालिस्तानी
न जाने कौन- कौन सी...?
देश में सफेद झूठ की वाहवाही के लिए
भेड़िए कविता सुना रहे हैं,
गीदड़ पत्रकारिता कर रहे हैं।
गिद्ध मस्त है,
गिद्ध व्यस्त है,
नोच खा रहा है
और अपनी बिरादरी को भी
भरपेट खिला रहा है...
बाकी बचा खुचा
स्विस बैंक में जमा करा रहा है।
और भेड़िए उसके गुणगान में,
कविता सुना रहे हैं।