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घटनाएँ

घटनाएँ

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कहीं पर रखकर उसे

जैसे मैं भूल जाता हूँ

जिंदगी बन्द अलमारियों में

बेआहट पड़ी रहती है यूँ

कि अचानक ही

घटनाएँ घटती हैं

मनमाफिक कुछ नहीं होता

शिकायत पड़ी रहती है

किसी दिन याद आ जाए तू

और मन उड़ा जाए फिर

देह भी तुझतक पहुँच जाए

और धड़कनें पड़ी रहतीं है

किसी दिन याद आ आकर तेरी

बच्चों सी मुझे परेशां करती है

ख़ुशी के बीच उदासी छोड़ कर

जाने शाम क्यों बुझी रहती है

सुबहो को जोश से भरकर

किलक उठता है देह में दिन

अक्स आँखों में लिए तेरा

मेरी ये रूह खिली रहती है


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