घरेलू औरतें (चार)
घरेलू औरतें (चार)
घरेलू औरतें
दिल की भोली भाली
छल कपट से दूर होती हैं
परिवार के लिए मर मिटती है
परिवार ही उसकी जान होती है
न्योछावर कर देती है उनके लिए सब कुछ
मगर खुद की नहीं कोई पहचान होती है।
घरेलू औरतें
घुटती है अंदर ही अंदर
उन चार दीवारों के
मकान में
जहां सब कुछ है पास उसके
सिवाय दर्द बांटने
हाल पूछने वाले के अलावा।
घरेलू औरतें
सुबह से लग जाती है
अपने काम में
उसमे वो कोई कोताही नहीं करती है
पर अपने रंग बिरंगे ख्वाबों को टूटते देख
मन ही मन फूट फूट रोती है।
घरेलू औरतें
अक्सर अफसोस करती हैं
कि यही तो उसकी जिंदगी है
जहां जीना मारना है
घर परिवार पति बच्चे
उनको ही बस सुख देना है
इसी को नियति मान लेना है।
घरेलू औरतें
गोल गोल रोटियां बनाती है
बड़े तन्मयता से
पर उखड जाती है
जब उसकी मेहनत को
दाल में नमक कम है
रोटियां टेढ़ी मेढ़ी और जली बहुत है
कहकर ताने मारे जाते हैं।
घरेलू औरतें
निकाल लेती है अपनी टीस
अपनी कुंठा
अपना गुस्सा
खुद पर
और निचोड़ लेती है
आंखों को अपने
आंसुओं से भर भर कर।
घरेलू औरतें
पहनती है सुहाग की निशानियां
चूड़ियां, सिंदूर,पायल और बिंदिया
अपना लेती है दूसरे की पहचान
अपनी पहचान खोकर।