मैं शक्ति बन जाऊंगी...!
मैं शक्ति बन जाऊंगी...!
अस्मिता तेरी तार तार
हो रही है जार जार
मूक बने यहां सभी
खुद लेना होगा प्रतिकार।
कोई नहीं यहां आएगा
जो लाज तेरी बचाएगा
नपुंसक खोखला समाज
ये बेच तुझे ही खायेगा।
हर तरफ हैं भेड़िए
गली गली में घूमते
जिस्म की हवस में ये
हर कली को चूमते।
नोचते हैं जिस्म ये
हर गली और मोड़ में
फेंक देते हैं फिर उन्हें
निवस्त्र करके रोड में।
सहमी जब तू चले
हर गली बाजार में
कातिल भी बैठे यहां
बस तेरे ही इंतजार में।
इज्जत बचाने को जब
तू हाथ पांव मारेगी
अत्याचार सहेगी तू
और मार दी जाएगी।
कोई ना तुझे
पूछेगा
इस भरे बाजार में
लांछन भी लगेगा तब
तेरे ही किरदार में।
कब तक सहेगी तू
एड़ियां रगड़ेगी तू
कातिलों के भीड़ में
कैसे अकेली रहेगी तू।
क्या होगा मेरा यहां
कैसे मैं जी पाऊंगी
यही सोचकर मैं यहां
बेमौत मारी जाऊंगी।
आंसुओं को पोंछ अब
धैर्य से विचार कर
जो झेला है तूने उसे
स्वयं से प्रहार कर।
खुद को बदलकर मैं
अब चामुंडा बनूंगी मैं
दोषियों को सजा के लिए
यज्ञ आग में तपूंगी मैं।
दुशासन का सीना चीर
लहू बालों में लगाऊंगी
नारी अस्तित्व के लिए
मैं शक्ति बन जाऊंगी।