गहरे जख्म
गहरे जख्म
उलझी ना कभी नजरें उनसे
ग़म फिर भी वो उम्र भर का दे गईं
बात ना कही मैने उनसे दिल की अपने
फिर जाने किस बात पर वो रूठ गई
शिकवा रहा हमेशा उसकी जुबान पर
चलते हुए जख्म वो गहरे दे गईं
नाराज़ थी वो हर मुस्कराहट पर मेरी
छुपने लगी वो हर आहट पर मेरी
जाते हूऐ वो मेरा काम आसान कर गईं
दे कर गहरे जख्म उम्र भर के
वो मोहन की रूह अपने नाम कर गईं
भुला वो भी ना सकेगी मुझको
जो अपने इश्क मे मुझे बदनाम कर गईं
मेरी पहली तमन्ना और आखिरी जाम बन गई
वो मेरी ना हो कर भी अपनो जैसा काम कर गईं
अपनी मुहब्बत मे सरेआम बदनाम कर गईं।