गीत
गीत
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मैं गीत पुराने गा लेता हूं,
खुलकर अब मुस्का लेता हूं।
जान गया हूं,जीवन तुझको
मैं खोकर भी सब पा लेता हूं।
धूप में मिली तो छांव भी होगी,
जीवन से,ऐसी आस लगा लेता हूं।
प्यास मिली तो नदी भी होगी,
ऐसे प्यास बुझा लेता हूं।
मन का मैल चढ़े ना मुझ पर,
तन का मैल मिटा लेता हूं।
प्रभु कृपा से अब तक, मैं
खुद से आंख मिला लेता हूं।
प्रेम की एक चौखट भी है,
जहां स्वयं को पा लेता हूं,
जब भी याद तुम्हारी आये,
संग तुमको मैं पा लेता हूं।.
मैं मर्यादा के मंचन पर भी
प्रेम राग को पा लेता हूं।
नियति को भी मना रहा हूं,
सो मंदिर में दीप जला देता हूं।