ग़ज़ल
ग़ज़ल
ज़िन्दगी तूने ख़ूब आजमाया है।
कभी धूप है, तो कभी साया है।
बच-बचकर चलता रहा तुझसे,
और तूने मुझे बहुत सताया है।
ये रिश्ते-नाते फ़रेबी और झूठे हैं
न कोई अपना न कोई पराया है।
अब क़दम संभालकर रखता हूँ,
तजुर्बों ने क्या-क्या सिखाया है।
'तनहा' कोई अपना न निकला,
जब नकाब चेहरों से हटाया है।