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Vivek Agarwal

Romance

4.8  

Vivek Agarwal

Romance

ग़ज़ल- पुराने खतों को जलाने चले हैं

ग़ज़ल- पुराने खतों को जलाने चले हैं

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पुराने खतों को जलाने चले हैं। 

नये ख़्वाब अब हम सजाने चले हैं।


खुदा मान जिसकी इबादत करी थी। 

उसे आज हम तो भुलाने चले हैं। 


समंदर किनारे लिखी थी कहानी। 

वो बर्बाद किस्सा मिटाने चले हैं।


करोगे करम जो वही फल मिलेगा। 

बबूलों को बो आम खाने चले हैं।


किये थे कभी हम से वादे जो उसने। 

वही आज हम आजमाने चले हैं। 


हमें छोड़ कर जो कभी खुद गये थे। 

उसी बेवफा को मनाने चले हैं। 


नज़र तक न डाली कभी हम पे जिसने।  

उसी पर सभी कुछ लुटाने चले हैं।


दिये घाव जिसने जिगर को हमारे। 

उसे जख्म अपने दिखाने चले हैं।


हमारी की जिसने बेरंग दुनिया। 

उसे रंग हम अब लगाने चले हैं।


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